भूख लगी थी उसको खाना नही मिला
खाना था जिसके पास उसे वक्त नही मिला
चंद कुत्ते भी थे उसी जूठन की आस में
इंसान के पेट में जिसे ठिकाना नही मिला
कितनी ही बस्तियों में न जाने चूल्हा नही जला
खाना फेंकते वक्त तुम्हारा ईमान नही हिला
भूख की जलन को वो क्या समझे
खाली पेट सोने का जिसे अनुभव नही मिला
दो दाने को तरसते है न जाने कितने लोग
और किसी को मनपसंद खाना नही मिला!
जूठन फेंकना जब भी तो याद कर लेना
उन बदनसीबों को जिन्हें खाना नही मिला
बदले का बदला
3 years ago
1 comment:
Kaash meri bitiya iss kavita ka arth samajh paaye ........
She is very selective about food and I land up being the trash bin eating her cold left over morsels!
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