Wednesday, November 18, 2009

भूख

भूख लगी थी उसको खाना नही मिला
खाना था जिसके पास उसे वक्त नही मिला

चंद कुत्ते भी थे उसी जूठन की आस में
इंसान के पेट में जिसे ठिकाना नही मिला

कितनी ही बस्तियों में न जाने चूल्हा नही जला
खाना फेंकते वक्त तुम्हारा ईमान नही हिला

भूख की जलन को वो क्या समझे
खाली पेट सोने का जिसे अनुभव नही मिला

दो दाने को तरसते है न जाने कितने लोग
और किसी को मनपसंद खाना नही मिला!

जूठन फेंकना जब भी तो याद कर लेना
उन बदनसीबों को जिन्हें खाना नही मिला




1 comment:

Shruti Johri said...

Kaash meri bitiya iss kavita ka arth samajh paaye ........
She is very selective about food and I land up being the trash bin eating her cold left over morsels!