Tuesday, November 24, 2009

मैं भी हूँ इक आसमान का मोहताज

तू क्या जाने तेरा क्या जाता है
गया जो जहाँ से एक बार फिर वापिस नहीं आता है

क्या फायदा ऐसी मुरीदगी का
मुसीबत के वक़्त कोई काम नहीं आता है

मैं भी हूँ एक आसमान का मोहताज़
मुझे भी गर्दन उठाना आता है

तुम भी चलो सब चले गए अब तो
आखिर तेरा मेरा नाता क्या है?

कही जाग न जाऊं नींद से मैं
उम्मीदों के सपने चकनाचूर करता क्या है

चलो खून के प्यासों को दो बूँद पिला दें
शरीर के इस चीथड़े में अब बचा क्या है

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