Sunday, November 15, 2009

मै भी सबके जैसा हूँ


कितनी हसरतें पाले बैठा हूँ
आह! क्या मै भी सबके जैसा हूँ?

मोहब्बत है मुझे भी ख़ुद से शायद
बोझ ज़िन्दगी का तभी ढोता हूँ

जानता हूँ जबकी मौत ही है आखरी निजात
फिर क्यों नित नए सूरज तलाशता हूँ?

तुमको देखता हूँ ऐसे
जैसे मैं तुम्हारा आईना हूँ

मेरी तकलीफें क्या समझोगे तुम
बतलाऊ क्या ख़ुद सोच में पड़ जाता हूँ

खौफज़दा हूँ यादों के मंज़र से
कब से न जाने मैं मरता रहा हूँ

सुना है रहनुमा है खुदा अपने बन्दों का
बन्दा कौन, खुदा कौन, बस इसी कशमकश में हूँ

दस्तक दे रहा है आज फिर कोई दिल की गहराइयों से
चलो अन्दर कौन है चल के देखता हूँ

सदियों से बैठा रहा है जो बुत बनकर सदा
कारोबार उसी का है ये सब, क्या मैं नही जानता हूँ?

वो ही मैं है, मैं ही वो हूँ, दरमियाँ भी हैं हमीं दोनों
आलावा इसके और मैं कुच्छ नही जानता हूँ






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