सुना है वक्त हर ज़ख्म का मरहम होता है
कोई ये क्यों नही बताता ज़ख्म क्यों मगर होता है
सितमगर तो हर ज़ख्म मुसलसल करते जाता है
क्या बात है जो सितम मगर हमसे नही होता है
सफर आग के अंगारों पर बेपरवाह
ये कौन सिरफिरा करता फिरता है
आज ज़िक्र छिड़ा फ़िर उस रोज़ की वेह्शत का
सिलसिला हैवानियत का चला तो फ़िर कहा थमता है
बदले का बदला
3 years ago
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