Sunday, November 15, 2009

जद्दोजहद

कितनी मुसीबतों को गले लगाया
फिर भी मैंने क्या पाया ?

क्यों लड़ता रहा हालत से मैं
आख़िर कौन मेरे साथ आया ?

जूझो अपने हालात से सिखाती है दुनिया
फरेब करो हर उस शक्स से जो तुम्हारे काम आया

दौड़ रहे है सभी आगे बढ़ने के वास्ते
अपाहिजों पे तरस किसी को भी न आया

क्यूकर करू मैं रहम तुम पर
बड़ी मुशकिल से ऊँट पहाड़ के नीचे आया

नाम न लो देस परदेस का मुझसे
दोनों जगह एक ही सा तमाशा पाया

किस बात का गुरूर किया करते हो
ऐसा क्या है जो तुमने ख़ुद में पाया?

माना तुम भी हालत के हो मारे
फिर वो कौन था जो कल मेरे ज़हन में आया?

हाँ उसे रहम नही आता
उसे तो मैंने अपने से ज़्यादा मजबूर पाया

नाम ले ले के जिसका लड़ते रहे लगातार
वो शक्स बेकार मेरी ज़िन्दगी में आया

बे इन्तेहाँ मोहब्बत की जिससे
उसे मैंने अपनी बाहों में दम तोड़ते पाया

पुछा खुदा से क्या इन्साफ है तेरा
जवाब में ज़माने भर का सन्नाटा पाया

ज़िन्दगी दी है जीने के वास्ते
ज़िन्दगी में फरेब के सिवा कुच्छ भी न पाया

खुदगर्ज़ ज़माना क्या सिखायेगा मुझको
चराग ले कर ढूँढा एक सच्चा इंसान न पाया

कहते है इश्वर के नियम को समझाना है नामुमकिन
क्या है क्यों है ये कोई नही समझ पाया

मुझे माफ़ कर देना चलता हूँ अब
यही समझूंगा मिटटी का क़र्ज़ नही चुका पाया


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