Sunday, January 13, 2008

चलता गया

अवाक खड़ा जीवन के पथ पर
गिरता, सेहेमता, संभलता , उबलता
चलता गया....

कभी सहारा तलाशता, कभी सहारा बनता
लाठिया खाता, लाठिया चलाता
इससे जुड़ता उससे बिछड़ता
चलता गया...

अविश्वास और विश्वास दोनों है पास
राम का नाम, शैतान का काम
सच की सुबह झूठ की शाम
लहरों से जूझता कश्ती संभालता
चलता गया...

आंसू बहाने में, आंसू पोछने में
सुख भोगने में, दुःख झेलने में
कुछ समझाने में, कुछ समझने में
बात गयी ज़िन्दगी
दामन में फूल और कांटे सजोये
हँसता, रोता
चलता गया...

कुछ असर था आज भी
कल खाए हुए ज़ख्मो का
ज़ख्मो की आड़ में, ज़ख़्म कुदेरता
नया ज़ख़्म, नया मरहम तलाशता
चलता गया...

किसको खबर कहा है मंजिल
इससे पूछता उसको बताता
चलता गया...

कुछ अजीब सी छटा थी आज
मुर्दे के चेहरे पर
उसी के खयालो में यूहीं
ज़िन्दगी की ज़द्दोज़हद में मौत का सुकून तलाशता
चलता गया...

२१ फेब्रुअरी २००४

3 comments:

Pallavi Marathe said...

I hope you will RE-DISCOVER yourself through this blog. All the best!

A new beginning said...

Nice !

Anonymous said...

rightly said